Tuesday, February 16, 2010

पाक से बातचीत पर कैसा ऐतराज ?

पुणे में आतंकी हमला होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी के सारे नेता पाकिस्तान से बातचीत करने के मुद्दे पर सरकार का विरोध करने लगे थे। बम विस्फोट के बाद तो पुरजोर विरोध कर रहे हैं। तर्क है, बातचीत और आतंकवाद एकसाथ नहीं चल सकते। जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों को खत्म नहीं करेगा, तब तक बातचीत शुरू नहीं होनी चाहिए। बयानबाजी के अगुवा लाल कृष्ण आडवाणी जी हैं। शायद आडवाणी जी अपने अग्रज और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल को भूल गए हैं। उस सरकार में खुद गृहमंत्री थे। हालांकि यह बात दूसरी है कि अब वे कंधार प्लेन हाईजैक पर हुए फैसलों से भी पल्ला झाड़ लेते हैं। हो सकता है कुछ बात याद हों।
सबसे पहले बात करते हैं पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर शिखर वार्ता की। 20-21 फरवरी 1999 को यह बातचीत हुई। संयुक्त बयान जारी हुए। कारोबार शुरू किया गया और दोनों मुल्कों के बीच रेल, बस यातायात तक शुरू करने का निर्णय लिया गया। सचिव से लेकर प्रधानमंत्री तक ने पाकिस्तान से बात की। महज तीन महीने बाद पाकिस्तान ने करगिल में घुसपैठ की। जंग छिड़ी और सैकड़ों जवान शहीद हो गए। कुछ दिन बाद ही 24 अक्तूबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस का प्लेन हाईजैक किया गया। पाक के आतंकवादी छोड़े गए। हालांकि इस फैसले से खुद को आडवाणी जी अलग करार देते हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद भाजपा की सरकार ने पाकिस्तान से बातचीत की। जम्मू-कश्मीर में तो तब भी आतंकवादी हमले हो रहे थे। इसके बावजूद नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक सरकार को उखाडऩे वाले तानाशाह परवेज मुशर्रफ को 15-16 जनवरी 2001 को आगरा बुलाकर शिखर वार्ता (बातचीत) की गई। क्या हुआ, बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला। परवेज मुशर्रफ आगरा में ताजमहल और दिल्ली में अपने पुरखों की हवेली देखकर चला गया। पूरा साल नहीं बीता और 13 दिसंबर 2001 को देश की अस्मिता पर हमला हुआ। लश्कर-ए-तय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने संसद पर हमला कर दिया। उसके बाद भी आडवाणी जी की सरकार ने पाकिस्तान की ओर बातचीत के लिए हाथ बढ़ाए रखा। अटल बिहारी वाजपेयी जी और आडवाणी ने कहा था कि बातचीत के लिए भारत हमेशा तैयार है।
अब क्या समस्या है, पाकिस्तान पहले से ज्यादा खुंखार हो गया है या भारतीय जनता पार्टी को अब समझ में आया है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि भाजपा केवल परंपरागत विपक्ष की भूमिका का निर्वाह कर रही है। यही हमारे देश के लिए विडंबना रही है कि विपक्ष का मतलब सत्ता पक्ष के अच्छे या बुरे, सभी कामों का विरोध करना है। हमारे नेता राष्टï्रीय हित को ध्यान में रखकर बयान नहीं देते, नीति नहीं बनाते। वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए बोलते हैं। कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिïकरण का आरोप लगाया जाएगा, तभी तो हिंदु भाजपा की ओर देखेंगे। भाजपा को नितिन गड़करी के रूप में भले ही युवा नेतृत्व मिल गया है लेकिन लीवर तो आडवाणी जी के हाथों में है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में दिग्विजय सिंह सरीखे नेता आजमगढ़ में जाकर आतंकियों के पक्ष में बयान दे देते हैं। जिससे भाजपा का कांग्रेस पर लगाया गया आरोप आम आदमी को सही नजर आने लगता है। अच्छा रहेगा कि भारत सरकार पाक से बातचीत करे। यह देखना जरूरी नहीं है कि कितनी सफलता मिलेगी। हालांकि भारत में प्राइमरी स्कूल का छात्र भी जानता है कि पाक को बात की नहीं लात की भाषा समझ में आती है। जब तक हम युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो जाते जरूरी है बातचीत के जरिए मन टटोलते रहें। कूटनीति भी कहती है कि दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहना चाहिए।
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4 comments:

राहुल यादव said...

kya karenge hum jagakar un buton ko
jo saans to lete hai per but bane khade hai.

yogesh said...

jis din neta desh ke liye sochna suroon kar denge halat kud b kud sudhar jayenge.

Unknown said...

agar tumhari soch se desh ke neta chlege to jarur kuchh safalta mil sakti hai. by the way har insan ki apni soch hoti hai. kursi per baithne ke bad soch bhi badal jati hai.

कुमार said...

dimag hai bhaiya ya computer. pata nahi itni jaankaari kaha se laate hai aap. by the way u touch d centre of problem very easily. god bless u. keep this spirit high.