Friday, February 5, 2010

मैं धारक को एक हजार रुपये अदा करने...

पिछले गुरूवार की सुबह सोकर उठा तो न जाने क्यों मुझे ताजमहल देखने की सूझी। फटाफट नहाया और पत्नी से नाश्ता बनाकर देने को कहा। पत्नी ने छुट्टी के बावजूद बाहर जाने की बात पर थोड़ी नाक-बोंह सिकोड़ी। मैंने बहाना कर दिया कि दिल्ली किसी काम से जा रहा हूं। शाम तक वापस आ जाउंगा। मैंने सराय काले खां स्टेशन से बस पकड़ी और दोपहर दो बजे तक ताजमहल के सामने पहुंच गया। जी भरकर ताजमहल को देखा और हरि पर्वत (आगरा में एक स्थान) आकर ढाबे पर जी भरकर खाना खाया। भगवान टॉकिज के सामने से शाम करीब पांच बजे फिर बस पकड़ी। रात नौ बजे दिल्ली-हरियाणा के बदरपुर बॉर्डर पर जाम लग गया। चार घंटे सफर के और चार घंटे जाम के झेलकर तकरीबन रात एक बजे फिर सराय काले खां बस अड्डे पर था। इतना घना कोहरा कि एक हाथ को दूसरा नजर नहीं आ रहा था। ऑटो वाले से पूछा नोएडा चलोगे, तपाक से ढाई सौ रुपये मांगे। लंबी जद्दोजहद के बाद एक सौ अस्सी रुपये में नोएडा के सेक्टर बारह तक छोडऩे के लिए राजी हो गया। ऑटो में बैठते ही मुझे कुछ याद आया और मैंने जेब से बटुवा निकालकर उसे पांच सौ रुपये का नोट थमाया। मैंने कहा, यह चलेगा। उसने मेरी ओर देखा और बोला नहीं। उसकी बात सुनकर कड़ाके की ठंड में मुझे पसीना आ गया। अब समस्या नोएडा पहुंचने की नहीं पांच सौ रुपये के नोट को चलाने की थी। एक घंटे का प्रयास विफल गया और रात के दो बजे तक नोट नहीं चला। आगरा से एक और बस आ गई। एक मेरी उम्र का युवक ब्रीफकेस, बैग और किताब लेकर उतरा। उसने ऑटो वाले से आवाज लगाकर नोएडा चलने को कहा। किराए को लेकर चिकचिक शुरू हुई। ऑटो वाला दो सौ रुपये से कम में चलने को तैयार नहीं था। मैं बीच में कूद पड़ा और ऑटो वाले से कहा मुझे तो एक सौ अस्सी में ले जा रहा था। युवक ने मेरे से पूछा आप क्यों नहीं गए। मैंने नोट की समस्या बताई। उसने दया की और कहा आप मेरे साथ चलिए। रास्ते में दोनों की बात हुई पता चला कि वह भी माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय से जर्नलिस्म की पढ़ाई कर रहा है। मेरा परिचय जानकर बड़ा खुश हुआ। नोएडा पहुंचा तो युवक ने मेरे हिस्से के रुपये लेने से इंकार कर दिया। मैं मन में सोच रहा था कि अगर यह सौ रुपये ले ले तो मेरी मुसीबत कट जाए। लेकिन वह जिद्दी निकला और चला गया। नोट तो रात को चलना ही नहीं था। मजबूरन बारह किलोमीटर पैदल चलकर सवेरे पांच बजे घर पहुंचा।
आप सोच रहे होंगे कि मैं यात्रा वृतांत आपको क्यों पढ़ा रहा हूं। यह मेरा यात्रा वृतांत नहीं, हर भारतीय की मुसीबत है। हम अपने देश में अपनी करेंसी लेकर घूमते हैं लेकिन लोग पांच सौ या हजार रुपये का नोट लेते हिचकते हैं। सोचते हैं, नकली होगा। आपका पड़ोसी दुकानदार छुट्टे देने से इंकार कर देगा। जबकि नकली नोट निकलने पर वह तो आपसे बदल सकता है। आपकी जेब में रखा हजार का नोट आपको भिखारी बनने के लिए मजबूर कर देगा। सरकार को सोचना चाहिए कि इस समस्या को और भयावह नहीं होने दे। इससे बुरी बात किसी सरकार के लिए और कुछ नहीं हो सकती कि उसके ही देश में उसकी मुद्रा पर उसके लोग शक करने लगें। अगर हालात नहीं संभले तो रिजर्व बैंक के गवर्नर का नोटों पर छपा वचन किसी काम का नहीं रहेगा। ये सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है।

2 comments:

mini said...

i think unhe change ki problem rahi ho

not he dout on your honesty???????????

कुमार said...

what a joking situation to our currency n country. rbi sud have take strong action against this. this is common man problem.