Tuesday, February 9, 2010

मेधा जी! आपसे यह उम्मीद नहीं थी

नर्मदा नदी को बचाने के लिए सफल आंदोलन चलाने वाली मेधा पाटकर पर न्यायालय को गुमराह करने का आरोप लगा है। उन्होंने अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं होने के लिए खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया। एक मेडीकल सर्टिफिकेट दिया, जिसे फर्जी माना गया है। वादी द्वारा विरोध किए जाने पर इसका पता लगा और अदालत ने मेधा पाटेकर से जवाब मांग लिया है। इस कृत्य लिए अदालत क्या कार्यवाही करेगी या नहीं करेगी, कोई फर्क नहीं पड़ता। रोज न जाने कितने लोग ऐसा कर रहे हैं। लेकिन इस प्रकरण से एक ऐसी महिला की छवि को धक्का पहुंचा है जिसके नक्शेकदम पर लड़कियां ही नहीं लड़के भी चलना चाहते हैं। मेधा पाटेकर, किरण बेदी और अरुंधति राय सरीखी महिलाओं ने आजाद भारत की नारी को पहचान दी है। इनसे ऐसी अपेक्षा कोई नहीं करेगा।
मेधा पाटेकर एक स्वतंत्रता संग्राम सैनानी परिवार से ताल्लुक रखती हैं। यहां बताना जरूरी होगा कि उनके पिता वसंत खानोलकर मुंबई के बड़े ट्रेड यूनियन लीडर और फ्रीडम फाइटर थे। माता इंदु महिलाओं के संगठन स्वदार की अग्रणी सदस्य थीं। स्वदार संस्था आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक और स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित महिलाओं के लिए काम करती थी। सामाजिक पृष्ठïभूमि वाले परिवार की मेधा पाटेकर ने नर्मदा बचाओ आंदोलन खड़ा किया। मानवाधिकारों के लिए काम किया। राइट लाइवलीहुड अवार्ड, दीनानाथ मंगेसकर अवार्ड, गोल्डन इनवायरमेंट प्राइज, ग्रीन रिब्बन अवार्ड समेत देश-दुनिया के तमाम सम्मान उन्होंने हासिल किए।
ये सारी बातें बतानी इसलिए लाजिमी हो जाती हैं कि जो लोग क्रप्ट सिस्टम के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, वे खुद इसका हिस्सा कैसे बन सकते हैं। मेधा पाटेकर पर कोई ऐसा अभियोग नहीं चल रहा था जिसके लिए उन्हें अपराधी मान लिया जाता। जिस स्तर पर वे काम कर रही हैं, वहां मानहानि जैसे मामले अहमियत नहीं रखते। हालांकि बड़े होने का मतलब दूसरों को अपमानित करना नहीं है। अदालत में उपस्थित होना कोई बुरी बात नहीं होती। अगर रियायत लेनी थी तो वाजिब कारण बताकर मिल सकती थी। शायद न्यायालय उनके जैसी शख्सियत के लिए स्वत: नरमी बरतता। वैसे भी न्यायालय मानते हैं कि संभ्रांत व्यक्ति जेल नहीं जाने चाहिएं। फर्जी मेडीकल अदालत को देना जाहिर करता है कि ऐसे कद्दावर और सिद्धांतवादी लोग भी न्याय प्रक्रिया को गलत ढंग से प्रभावित करना चाहते हैं। जैसा देश में आम बात है। लेकिन मेधा पाटेकर के लिए ऐसा करने से शायद जेल चले जाना अच्छा होता। यहां एक बात और जोडऩा चाहूंगा कि परिस्थितियों ने भगवान राम से भी सीता सती को वनवास देने का अपराध करवा दिया था।
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2 comments:

yogesh said...

jo log samaj ke liye misal ban jate hain unke aacharan hmesha aachache hone chahiye. unka har kam samaj pr aasar dalta hai.

कुमार said...

kabhi-kabhi samaj ki shakhshiyat na chahte hue bhi vivado me pad jati hai. jaroori nahi ki iske peeche seedha unka dosh ho, balki kabi-kabhi in ke P.A ya asistant bhi apni galti se inhe phanswa dete hai. but one has to pay for success.