परिवार के बूते राजनीति में आने वाले युवकों की देश में लंबी लाइन है। लेकिन ये सारे दो श्रेणियों में बंटे नजर आते हैं। पहली श्रेणी में वे युवराज हैं जो अपनी शालीनता के कारण आम आदमी ने स्वीकार कर लिए हैं। मसलन राहुल गांधी, ज्योतिर्रादित्य सिंधिया, अगाथा संगमा, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी आदि। दूसरी श्रेणी में ऐसे युवा नेता है जो आए तो बड़े राजनीतिक परिवारों से हैं लेकिन जबान के कारण उनका नाम जुबान पर आते ही आम आदमी नाक-भोंह सिकोडऩे लगता है। वरुण गांधी, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे इसी जमात में हैं।
राज और उद्धव के बारे में तो बात करना ही बेकार है। यहां मूल उद्देश्य वरुण गांधी के बारे में बात करना है। वरुण गांधी उस शख्सियत संजय गांधी का बेटा है, जिसे देश की बागडोर संभालने का मौका तो नहीं मिला लेकिन वही एक व्यक्ति था, जिसने रसातल में पहुंची कांग्रेस और इंदिरा गांधी को उबारा। 1975 में आपातकाल के बाद वाले बुरे दौर में संजय गांधी के बड़े भाई और बाद में देश के प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी तो भारत में भी नहीं थे। 1977 में हारी कांग्रेस और इंदिरा गांधी को संजय गांधी ने अपने बूते 1980 में वापसी करवाई। भ्रष्टïाचार के आरोप लगने के बावजूद संजय गांधी मारूति कार लेकर आए। हालांकि दुर्भाग्यवश उनके जीते जी कार सड़क पर नहीं उतरी लेकिन बाद में यह आम आदमी की कार बनी। संजय गांधी ने दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते चौधरी चरण सिंह, राज नारायण और मोरारजी देसाई सरीखे खांटी नेताओं को शिकस्त दी। लेकिन वरुण गांधी ऐसे नजर नहीं आते। वरुण अभी तक अपने विवादस्पद बयानात के कारण सुर्खियों में रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान हिंदुवादी भावनाएं भड़काकर छा तो गए लेकिन पढ़े-लिखे तबके में छवि खराब हो गई। भारतीय जनता पार्टी को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ। एनएसए लगी और जेल जाना पड़ा। भाजपा के बड़े नेताओं ने भी वरुण को गलत ठहराया। कोई अगर यह कहता है कि संजय गांधी ने भी 1976 में जामा मस्जिद इलाके में मुसलमानों को परेशान किया। यह गलत है। जामा मस्जिद स्लम प्रकरण कोई हिंदुवादी गतिविधि नहीं थी। दिल्ली में बढ़ती भीड़ पर जो बात आज शीला दीक्षित कह रही हैं, वह संजय गांधी ने तब कही थी। परिवार नियोजन उनकी सार्वजनिक विचारधारा थी। जो आज देश के लिए जरूरी हो चुकी है। बीते शनिवार को जब राहुल गांधी मुंबई दौरा करके युवाओं का दिल जीत रहे थे तो उससे अगले दिन वरुण गांधी ने बुलंदशहर में महंगाई के मुद्दे पर बचकाना बयान दिया। उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को रावण और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को शूर्पणखा कह दिया। पढ़े-लिखे देश में भाजपा का मंदिर मुद्दा ज्यादा दिन नहीं चला तो भला ऐसी बातें कौन सुनेगा। वरुण गांधी को चाहिए कि एक दमदार युवा नेता के रूप में उभरकर सामने आएं। उनके साथ जुझारू पिता और सुलझी राजनकता मां का नाम जुड़ा है। लोगों को जितनी उम्मीदें राहुल गांधी से हैं, उससे कहीं ज्यादा वरुण गांधी से हैं। वरुण भाई! जरा सोच-समझकर बात कहा करो। नहीं एक दिन आएगा कि लोग आपकी बात सुनकर अनसुनी करने लगेंगे। ऐसी बातों पर लोग केवल तालियां बजाते हैं।
Sunday, February 7, 2010
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4 comments:
i think barud tipe logon ki bhi jarurat hai
baat wakai damdaar hai. wajani hai aur lakshya kendrit hai. wo keval ek baat ek bol hi hai jo dost ko dushman aur dushman ko dost bana sakte hai. pyar ke do meethe bol wakai kamal kar sakte hai. lekin rajneta to bc type log hote hai. inhe kewal bakbak karne se matlab rahta hai. baki kisi se nahi,
baat sunna band kar di hai.... lagenge nhi....?
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