Sunday, March 7, 2010

ये स्कूल हैं या द्रोणाचार्य की पाठशाला

जितनी अच्छी शिक्षा की बात हम कर रहे हैं स्कूलों के हालात उतने ही ज्यादा खराब होते जा रहे हैं। विद्यालयों में भेदभाव किया जा रहा है। हाल में दो सनसनीखेज मामले सामने आए हैं। दोनों प्रकरण ग्रेटर नोएडा से ताल्लुक रखते हैं। दादरी कसबे के एक स्कूल ने 38 छात्रों को परीक्षा नहीं देने दी। कारण, बच्चे सही समय पर फीस नहीं चुका पाए। क्या यही समस्या का वाजिब समाधान था? नहीं, परीक्षा तो दिलवाई जा सकती थी। अगर प्रबंधन चाहता तो परीक्षा परिणाम रोक लेता। फीस वसूलने के बाद परिणाम घोषित किया जा सकता था। स्कूल के प्रधानाचार्य ने 38 छात्रों को रोकने की बात कुबूल की है। कई लोगों का आरोप है कि लगभग 250 छात्रों को परीक्षा से रोका गया है।

अब दूसरा मामला देखिए। ग्रेटर नोएडा के दिल्ली पब्लिक स्कूल में कक्षा आठवीं में प्रवेश लेने के लिए अनुभव शर्मा नामक छात्र ने प्रवेश परीक्षा दी थी। वह सफल रहा। विद्यालय प्रबंधन ने उसे साक्षात्कार के लिए बीती 22 फरवरी को बुलाया लेकिन साक्षात्कार नहीं लिया। कहा गया कि किसी दिन बाद में साक्षात्कार होगा। छात्र और अभिभावक पंद्रह दिनों तक भटकते रहे। आखिर में उन्हें स्कूल की ओर से बताया गया कि गांव में रहने वाले छात्रों को दाखिला नहीं दिया जाता है। दो लाख रुपये डोनेशन भी नहीं दे पाओगे। दोनों मामलों की शिकायत जिला प्रशासन से की गई है। जांच की जा रही है। लेकिन जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। अनुभव को शायद दाखिला मिल जाए और दादरी में छात्रों की परीक्षा ले ली जाए। परन्तु दुष्प्रभावों पर विचार करने की जरूरत है। अनुभव और दूसरे छात्रों की उम्र बमुश्किल 10-13 साल है। इस घटना से बालक के मन में शहरी स्कूलों और बच्चों के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया होगा। ताउम्र इस बुरी घटना को याद रखेंगे। भविष्य में इसके बुरे परिणाम भी निकल सकते हैं।

गांवों के बच्चों को दाखिला नहीं देने का यह कोई पहला मामला नहीं है। नोएडा और दिल्ली समेत तमाम शहरों में यह कुप्रथा जड़ें जमाए है। आजकल के फाइव स्टार स्कूलों में द्रोणाचार्य की तरह केवल राजकुमार पढ़ रहे हैं। गरीब और गांव के बच्चे इन्हें अच्छे नहीं लगते। अगर कोई इन राजषी पाठशालाओं में भरती हो भी जाए तो गुरू दक्षिणा बहुत ज्यादा होती है। महाभारत काल में एकलव्य को इस गुरू दक्षिणा का खामियाजा भुगतना पड़ा था। द्रोणाचार्य ने उसे अपनी पाठशाला में बुलाकर अंगूठा ले लिया था। अब तो अंगूठा नहीं लाखों रुपये की जरूरत होती है।

फाइव स्टार स्कूलों से जुड़ी और भी कई शर्मनाक घटनाएं हैं। ज्यादातर आपने खूब सुनी हैं। चंडीगढ़ के एक स्कूल ने पिछले सप्ताह एक छात्रा को परीक्षा देने से रोक दिया। कारण, छात्रा के साथ दुष्कर्म हुआ था। जिसके बाद प्रबंधन ने सोचा कि अगर छात्रा स्कूल में रहेगी तो माहौल खराब होगा। अंतत: छात्रा ने विद्यालय को कानूनी नोटिस भेजा। जिसके बाद परीक्षा देने की अनुमति मिल गई। अब प्रबंधन सफाई देता घूम रहा है। पिछले दिनों हरियाणा के डीजीपी एसपीएस राठौर द्वारा प्रताडि़त रुचिका गेहरोत्रा का प्रकरण सामने आया था। रुचिका को भी उसके स्कूल ने निकाल दिया था। इन द्रोणाचार्य की पाठशालाओं से जुड़े न जाने और कितने मामले हैं जिनका हमें पता नहीं लगा है। सवाल यह उठता है कि इन स्कूलों में पढ़ रहे छात्र कैसे गुण लेकर बाहर निकलेंगे?
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5 comments:

NISHANT said...

Welcome in blog world......

jayanti jain said...

IT is system faliur

saurabh sharma said...

ye dronacharaya ki nahi ghrinacharya ki pathshala hai tbi to in five star pathshalao me bheem aur arjun jaise nahi balki duryodhan jaise vyaktitv nikalte hain.

PRABHU NETRA said...

thanks mam

parashar said...

fantastic