Sunday, March 21, 2010

'डूब' रही हैं नदियां

नदियों के पानी की वजह से हरे-भरे रहने वाले उत्तर प्रदेश में अब हर साल सूखा तांडव करता है। कृषि उत्पादन लगातार घटता जा रहा है। यहां तीन नदियां समाप्त हो गईं हैं और पांच का अस्तित्व खतरे में है। नदियों पर संकट की बाबत प्रदेश सरकार का जल संाधन विकास, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग कई बार रिपोर्ट दे चुका है। लेकिन हालात सुधरने की बताय लगातार बिगड़ रहे हैं।

गंगा और यमुना की आठ सहायक नदियां हिंडन, कृष्णा, गांगन, बान गंगा, राम गंगा, काली, नीम और करवन दोआब के सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ़, आगरा, मुरादाबाद और बरेली मंडलों में बहती हैं। नीम, करवन और गांगन नदी समाप्त हो चुकी हैं। बाकी पांच बरसाती नाले बनकर बह रही हैं। दरअसल नदियों के तटबंधों की मरम्मत और विकास बरसों से रुका है। सरकार का जोर केवल नहरी परियोजनाओं पर रहा है। जबकि नहरों की क्षमता महज 2.5 लाख क्यूसेक है। सहायक नदियों समेत गंगा और यमुना में 20 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी होता है। गंगा और यमुना उत्तर प्रदेश की लाइफ लाइन हैं। इनकी सहायक नदियां धमनी और शिराओं की तरह धरती को सींचने का काम करती थीं।लेकिन अब इन नदियों में पानी पहुंचता ही नहीं। 22 जिलों के 69 शहर, 38 हजार गांव और 2.5 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं। हिंडन आठ जिलों को प्रभावित करती है। लगभग 182 किलो मीटर लंबी दूरी तय करने वाली यह नदी औद्योगिक और शहरी अपशिष्टï की वाहक बन चुकी है। आईआईटी दिल्ली के चार विशेषज्ञों की एक टीम ने सालभर पहले रिपोर्ट देकर बताया है कि नदी में जीवन समाप्त हो गया है। कृष्णा नदी चार जिलों में 140 किमी चलकर बागपत जिले में हिंडन में समा जाती है। इस नदी में पानी केवल बरसात के दिनों में नजर आता है। काली नदी दस जिलों में बहती है। यह शहरी सीवर लाइन जैसी गंदी हो चुकी है। नीम और करवन नदी समाप्त हो गई हैं। गांगन बरसाती नाला बन चुकी है। राम गंगा और बान गंगा में नहीं की बराबर पानी है।

प्रभाव सूखे के रूप में देखने के लिए मिल रहा है। नदियों के समाप्त होने से हर साल सूखे की चपेट में खेतीबाड़ी आ रही है। सरकार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर साल करोड़ों रुपया बाढ़ नियंत्रण एवं सूखा राहत योजना पर खर्चना पड़ता है। दूसरी ओर किसानों को अरबों रुपये का नुकसान सहना पड़ता है। पिछले पांच सालों के हालात देखें तो वर्ष 2००4 में 27.23 लाख हेक्टेयर फसल सूखे की चपेट में आई। किसानों को लगभग 550 करोड़ रुपये की हानि हुई। सरकार को बचाव पर 88 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे। वर्ष 2005 में 21.12 लाख हेक्टेयर फसल सूखे की भेंट चढ़ गई। किसानों को 521 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सरकारी खजाने पर एक अरब से ज्यादा की चोट पड़ी। 2006 में 13.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर खेती सूखे के कारण बर्बाद हुई थी। जिससे किसानों को 201 करोड़ रुपये की हानि हुई। सरकार को 28 करोड़ रुपये किसानों को राहत के तौर पर देने पड़े। वर्ष 2007 में सबसे ज्यादा 30.66 लाख हेक्टेयर भूमि पर फसलें सूख गईं। किसानों को 615 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। सरकार ने 125 करोड़ रुपये किसानों को बतौर मुआवजा दिए। 2008 में 5.50 लाख हेक्टेयर फसलें पानी की कमी के कारण सूखीं।

हमें हर कम से कम 4.5 फीसदी की दर से कृषि क्षेत्र में विकास की जरूरत है। दर दो फीसदी से आगे नहीं बढ़ पा रही है। जिसके लिए सूखा सबसे बड़ा जिम्मेदार है। सरकारों को नदियां डूबने से बचानी होंगी। नहीं तो उत्तर प्रदेश में खेतीबाड़ी के लिए दिन और बुरे आने वाले हैं। जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ेगा।
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4 comments:

कुमार said...

bahut khoob. kya story ideas hain. lagey rahiye

कुमार said...

ek baat aur kahna to bhool hi gaya ki is desh me nadiyan hi nahi balki har wo achchi vastu doobti hai jo behatar hai, vikasparak hai aur uddeshyapoorna hai. ab apne blog ko hee dekhiye isme bhi logon ke cumments ka sookha pada hua hai. aur ho bhi kyun na jab nadiyon me sookha pad sakta hai to ati uttam vichaaron par kyun nahi, but learn from the sea, it goes up & comes down as jwaar bhata, but it doesnt diminish it's identity.

Unknown said...

bahut achchha hai guru

कुमार said...

kahan gayab ho gaye bhai.koi naya update nahi. sab kuch bhadiya hai naa,