Sunday, April 18, 2010

नहीं रहे दुनिया बदलने वाले

बीमारी, भूख और अज्ञानता इंसान के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इनसे लडऩे वाले लोग बहुत कम हैं। जो ऐसा कर पाते हैं, वे दुनिया को बदल देते हैं। हालांकि जीवन भर इन समस्याओं से लडऩे वालों के बारे हमें बहुत कम जानकारी हैं। पिछले कुछ महीनों में ऐसे छह इंसान इस दुनिया को अलविदा कह गए हैं। हरित क्रांति, आधुनिक अर्थशास्त्र, दिल की बीमारी का इलाज, हाइड्रोजन बम और इंसानी वजूद की खोज इन लोगों ने की थी। इन्हें कभी दुनिया ने नोबेल से नवाजा था। इन सबके रिश्ते भारत से रहे हैं। उनकी खोज से हमें बड़े फायदे हुए हैं।

सर जिम ब्लैक
सबसे पहले बात करते हैं सर जिम ब्लैक की। जिम ब्लैक की मौत हाल में 22 मार्च, 2010 को हुई है। इस शख्स ने दुनिया भर के उन करोड़ों लोगों के लिए दवाएं खोजीं, जो डिप्रेशन, हार्ट बर्न और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों की चपेट में हैं। उच्च रक्तचाप, हृद्य रोगों के लिए पहली बीटा ब्लॉकर ड्रग प्रोपरानोलोल और पेट में अल्सर के लिए हिस्टामाइन एच-2 रिसेप्टर एंटागोनिस्ट दवा सिमेटीडाइन की खोज की। ये दवाएं आज डिप्रेशन, दिल और पेट की बीमारियों से पीडि़त लोगों का जीवन बचा रही हैं। स्कॉटिश डॉक्टर जिम ब्लैक को 1988 में मेडीसीन के नोबेल से नवाजा गया था। वर्ष 2001 में दिए अपने अंतिम साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि मानव सेवा उनका धर्म है। जिसे वे पूरा कर रहे हैं। भारत के परिप्रक्ष्य में उनकी खोज का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। यहां प्रत्येक पांचवां रोगी उनकी दवा का सेवन कर रहा है।

मार्शल वारेन निरेनबर्ग
दूसरे हैं मार्शल वारेन निरेनबर्ग। निरेनबर्ग और भारतीय मूल के जैव वैज्ञानिक प्रोफेसर हरगोविंद सिंह खुराना को 1968 में संयुक्त रूप से मेडीसीन का नोबेल दिया गया था। निरेनबर्ग की इसी साल 15 जनवरी को मौत हो गई है। निरेनबर्ग ने हरगोविंद सिंह खुराना के साथ मिलकर जेनेटिक कोड की खोज की। बताया कि डीएनए में आरएनए होता है। जो प्रोटीन संश्लेषण करता है। इसमें यूरेसिल और न्यूक्लियोटाइड होते हैं। यह खोज आज बीमारियों का इलाज करने से लेकर अपराधियों को पकडऩे तक में मददगार साबित हो रही है। चिकित्सा विज्ञान की स्टेम सेल थैरेपी जैसी नवीनतम विधा इसी अनुसंधान की कड़ी है। आने वाले वर्षों में यह क्रांतिकारी साबित होगी।

पॉल सैमुअलसन
जिस तीसरे शख्स के बारे में बात करेंगे, उसने भारतीय अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था को सीधा लाभ पहुंचाया है। भारत में अर्थशास्त्र और प्रबंधन को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में उनका योगदान है। अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल सैमुअलसन ने सबसे पहले अर्थशास्त्र का गणितीय आधार पर वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। इकोनोमिक्स को विज्ञान का दर्जा दिलाने में उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1970 में नोबेल से नवाजा गया। वर्ष 1961 में जब भारत सरकार ने फोर्ड फाउंडेशन के साथ मिलकर पहले प्रबंधन संस्थान (भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता) की नींव रखी थी तो पॉल सैमुअलसन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कई साल तक बतौर शिक्षक आईआईएम को सेवाएं दीं। आईआईएम, कोलकाता के परिचय में इस आदमी का नाम सबसे पहले आता है। यहां से निकले भारतीय प्रबंधकों की आज दुनिया में धाक है। पिछले साल क्रिसमस से पहले 13 दिसंबर, 2009 को उनकी मृत्यु हुई। वे दिलचस्प लेखक भी थे। हंसमुख अंदाज में काम करना उनकी आदत थी। एक अच्छे अर्थशास्त्री के लिए यह जरूरी है। सैमुअलसन की किताबें भारत सहित दुनियाभर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं।

विटैली गिंजबर्ग
एक नाम है विटैली गिंजबर्ग। रूस के भौतिक शास्त्री गिंजबर्ग ने अपने देश के लिए हाइड्रोजन बम बनाया। उनकी रक्षा उपलब्धि ने अमेरिका और रूस के बीच शक्ति संतुलन स्थापित किया। जिसका फायदा भारत को भी हुआ। आगे चलकर उन्होंने सुपर कंडक्टर्स थ्योरी का सूत्रपात किया। जिसके मुताबिक बिजली बिना किसी प्रतिरोध के बेहद कम तापमान पर गुजर सकती है। इस खोज के लिए उन्हें वर्ष 2003 में नोबेल दिया गया। हालांकि उन्हें बहुत पहले रूसी राजनीति से लगभग बेदखल कर दिया गया था। दरअसल 1946 में उन्होंने दूसरा विवाह किया। उनकी इस पत्नी का नाम रूसी नेता जोसफ स्टालिन की हत्या में शामिल लोगों में था। जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। गिंजबर्ग ने भारतीय भौतिक शास्त्रियों को महत्वपूर्ण सहयोग दिया। जिसके लिए उन्हें इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज ने 1977 में ऑनरेरी फेलो बनाया था। नोबेल पुस्कार मिलने पर उन्होंने लिखा 'यह सब अवसरों की श्रृंखला है। मेरी उम्र 87 साल है। भविष्य में शायद फिर कभी अपने बारे में लिखने का मौका मिले। बीते 08 नवंबर, 2009 को मास्को में उनकी मौत हुई। उनके अंतिम संस्कार में कई भारतीय वैज्ञानिकों ने शिरकत की।

नोरमैन बोरलोग
नोरमैन बोरलोग, इस नाम को शायद ही कोई पढ़ा-लिखा भारतीय नहीं जानता होगा। दुनिया में हरित क्रांति के पिता और करोड़ों लोगों पर मंडरा रही भुखमरी की काली छाया को इस आदमी ने दूर किया। नोरमैन बोरलोग ने भारत समेत पूरी दुनिया को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए दिन-रात काम किया। उनके समकालीन जैव विज्ञानी डा.पॉल आर एरलिच ने अपनी किताब 'द पोपुलेशन बॉम्ब में लिखा है कि 1960 के दशक में दुनिया भूख से युद्ध लड़ रही थी। मेक्सिको (अमेरिका) के रहने वाले बोरलोग के काम की शुरूआत तो 1950 के दशक में हो गई थी। 1960 के बाद से परिणाम सामने आने लगे। उन्होंने ज्यादा पैदावार देने वाले गेहूं की लगभग 200 प्रजातियां विकसित कीं। मई 1962 में पहली बार कुछ प्रजातियां पूसा के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में उगाई गईं। जिसके परिणाम देखकर संस्थान के सदस्य एमएस स्वामीनाथन ने निदेशक डा.बीपी पाल से निवेदन किया कि बोरलोग को भारत बुलाया जाए। कृषि मंत्रालय को पत्र लिखा गया और मार्च 1963 में रोकफेलर फाउंडेशन और मेक्सिको सरकार के कहने पर बोरलोग ने भारत का दौरा किया।

अक्तूबर 1963 में प्रत्येक प्रजाति का 100 किलोग्राम बीज भारत भेजा गया। जिसे दिल्ली, लुधियाना, पंतनगर, कानपुर, पुणे और इंदौर में रोपा गया। बात नही बनी तो 1965 में बोरलोग की टीम ने मेक्सिको में 450 टन बीज तैयार किया। इसमें से 200 टन भारत और 250 टन पाकिस्तान को दिया जाना था। शिकागो में हिंसक दंगों के कारण भारत में समय से बीज नहीं पहुंच सका। दूसरी ओर पाकिस्तान की ओर से भेजा गया एक लाख डॉलर का चैक बाउंस हो गया। जिस पर पाक के तत्कालीन कृषि मंत्री मलिक खुदा बख्श बूचा ने बोरलोग को पत्र लिखकर कहा 'मैं चैक के कारण आई परेशानी के लिए शर्मिंदा हूं। लेकिन दिक्कत की कोई बात नहीं है। हमारे पास पर्याप्त धन मौजूद है। 1966 में भारत ने 18 हजार टन बीज का आयात किया। जो उस समय दुनिया का सबसे बड़ा बीज आयात था। 1967 में पाकिस्तान ने 42 हजार और टर्की ने 21 हजार टन बीज आयात किया। 1968 में जब भारत में गेहूं की फसल कटी तो जूट की बोरियां, ट्रक, रेलगाडिय़ों के डिब्बे और गोदाम कम पड़ गए। 1967 के 12.2 मिलियन टन के मुकाबले 1969 में 20.1 मिलियन टन गेहूं पैदा हुआ। 1974 तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया और 1975 में बोरलोग की टीम के अगुवा डा.रॉबर्ट ग्लैन एंडरसन वापस लौट गए।

बोरलोग ने 1986 में वल्र्ड फुड प्राइज की स्थापना की और 1987 में पहला पुरस्कार एमएस स्वामीनाथन को दिया। स्वामीनाथन ने पुरस्कार में मिली ढाई लाख डालर की राशि से रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। 1970 में बोरलोग को शांति का नोबेल दिया गया। भारत सरकार ने उन्हें 2006 में दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया। बीते 12 सितंबर, 2009 को बोरलोग तो नहीं रहे। 2001 में उन्होंने नोबेल प्राइज फाउंडेशन की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा 'भूखो पेट के साथ शांति स्थापित नहीं की जा सकती।
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